फाइनेंसियल स्ट्रेस:- समाधान
फाइनेंसियल स्ट्रेस:- समाधान
एक दिन अखबार में खबर छपी कि मुंबई शहर के मशहूर आर्किटेक्टदम्पति जिसकी हनीफ आर्किटेक्ट के नाम से एक दिन मुम्बई में तूती बोलती थी, ने समुद्र में कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
हनीफ मुम्बई के एक से एक बेहतरीन फ़िल्म स्टूडियो डिज़ाइन करने वाला आर्किटेक्ट था। कारण फाइनेंसियल स्ट्रेस। हाल ही में उसने बॉलीवुड के एक बड़े फिल्म डायरेक्टर का स्टूडियो डिजाइन किया था। फिल्म डायरेक्टर ने स्वयं एक फ़िल्म प्रोड्यूस की थी। जिसमें डायरेक्टर की माली हालत खराब हो गई। फिल्म में कुछ ऐसे दृश्य थे जिन पर एक विशेष समुदाय को आपत्ति थी। जिसके कारण वह फिल्म जहाँ भी लगी उन सिनेमा हॉल्स में तोड़-फोड़ हो गई। इसलिए फ़िल्म नहीं चली।
फिल्म डायरेक्टर अपने आर्किटेक्ट को भुगतान करने में असमर्थ था। उधर आर्किटेक्ट ने बाजार से उधारी लेकर 5 करोड़ काम कर दिया। चूंकि आर्किटेक्ट का पैसा फ़िल्म डायरेक्टर में फंस गया, इसलिए वह, बाजार की उधारी चुकाने में असमर्थ था।
आर्किटेक्ट कई बार अपने किए गए वादों को पूरा नहीं कर पाया। उधारी मांगने वाले सुबह-सुबह उसके घर आकर भला बुरा कहते थे। आर्किटेक्ट व उसकी पत्नी नैतिकता के दबाव में, अपराध बोध में आ गए। लेनदारों का दबाव सहन नहीं कर पाए।
भूषण स्टील, एसआर स्टील, बिनानी सीमेंट जैसी दिग्गज कंपनियां दिवालिया हो गई और उनके प्रमोटर अपना जीवन जी रहे हैं। जीवन को समाप्त करना एक आपराधिक कृत्य है इसलिए अपराधिक कृत्य करने की बजाय आर्किटेक्ट दम्पत्ति को भी लीगल रेमेडी लेनी चाहिए थी। लेकिन आर्किटेक्ट नहीं जानता था कि वह क्या लीगल रेमेडी ले सकता है? उसने अपने वकील से, अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट से कंसल्ट नहीं किया और अनजाने में, ईश्वर के दिए हुए खूबसूरत जीवन को समाप्त कर लिया।
Insolvancy and Bankruptcy Code – 2016( IBC) में इंडिविजुअल को अपने आप DRT में एप्लीकेशन लगाकर दिवालिया घोषित करवाने का प्रावधान किया गया है। लेकिन वे प्रावधान अभी नोटिफाई नहीं है। इसलिए अभी तक इंडिविजुअल को IBC के तहत DRT में एप्लीकेशन लगाकर अपने को दिवालिया घोषित कराने की रेमेडी नहीं है।
लेकिन पुराने ब्रिटिश राज के बने कानूनों के तहत “The Provincial Insolvency Act-1920” व मुंबई, कोलकोता, चेन्नई में “The Presidency-Towns Insolvency Act-1909” के तहत डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में एप्लीकेशन लगेगी। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में थोड़ा समय लगता है। लेकिन सम्बंधित व्यक्ति अनावश्यक उत्पीड़न से बच सकता है। जो भी उसकी संपत्ति होगी, उससे वसूली करके उसके लेनदारों का निबटारा करवाया जाएगा।
जो भी इंसान स्ट्रेस में हो, फाइनेंसियल burden में हो अपराध बोध में नहीं आना चाहिए। यह कोई क्राइम नहीं है। और जो भी परिस्थिति हैं, उनके बारे में उस समय सोचा जाना असम्भव था। अच्छे सीए/ लॉयर से राय लें। कानून साथ देता है, पीड़ित का।